ऐ मन गुस्ताख ! चाहता क्या है ?
सब उलझे हैं , आखिर इसकी तमन्ना क्या है
पल-पल सिमटे हैं मन के आगोश में
क्या ये उलझन , इम्तेहान क्या है ...
ये जमीं चल रही , आसमां देख रहा
ये नादां दिल की आरजू क्या है
इस तरह विचलित है दिल का समंदर
मोजे स्थिर हैं , न जाने किनारा क्या है ...
मन की नादानी का क्या कोइ अंत नही
इस प्यासी रूह का इलाज क्या है ?
हर पल अस्थिर आरजू पनपती इसमें
ज़िन्दगी खोयी तो हैरानी क्या है ...
कभी कामयाबी की चाह तो कभी कुछ और ही
निरंतर बढ़ते अरमानों का अंजाम क्या है
इस चढ़ती-उतरती मन की चाल का
सुलझा-सुलझा अंत क्या है .....?
सब उलझे हैं , आखिर इसकी तमन्ना क्या है
पल-पल सिमटे हैं मन के आगोश में
क्या ये उलझन , इम्तेहान क्या है ...
ये जमीं चल रही , आसमां देख रहा
ये नादां दिल की आरजू क्या है
इस तरह विचलित है दिल का समंदर
मोजे स्थिर हैं , न जाने किनारा क्या है ...
मन की नादानी का क्या कोइ अंत नही
इस प्यासी रूह का इलाज क्या है ?
हर पल अस्थिर आरजू पनपती इसमें
ज़िन्दगी खोयी तो हैरानी क्या है ...
कभी कामयाबी की चाह तो कभी कुछ और ही
निरंतर बढ़ते अरमानों का अंजाम क्या है
इस चढ़ती-उतरती मन की चाल का
सुलझा-सुलझा अंत क्या है .....?
अच्छी रचना ....पर मात्राओं का ध्यान रखें
ReplyDeleteमन कि नादानी का क्या कोइ अंत नही
ReplyDeleteइस प्यासी रूह का इलाज क्या है
हर पल अस्थिर आरजू पनपती इसमें
ज़िन्दगी खोयी तो हैरानी क्या है ...
रचना
अच्छी है ,,, पढने लायक़
बस एक बात याद आती है
"दिल ए नादाँ , तुझे हुआ क्या है..."
thankxx daanish
ReplyDeleteji uncle ji matra mistake bahut hoti hai
ReplyDeletevery nice.... matra ka kya karna hai... hehe.. just improve your hindi vocabulary
ReplyDeleteso that u can write your thoughts in nice way
दीपू जी ! आपका सुझाव बहुमूल्य है मेरे लिए .........मैं अपनी कमजोर हिन्दी के लिए शर्मिन्दा हूँ ...पर वादा करती हूँ की सुधार ज़रूर करूंगी. ब्लॉग पर आकर अपना अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद .
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