वक़्त के आगोश में सब सिमट जाते हैं,
रास्ते ही नहीं मंजिल भी बदल जाते हैं ...
बुझ जाये ग़र एक बार वक़्त का दिया ,
जज़्बात हो या अरमां सब बदल जाते हैं ...
चमक ही नहीं चलन भी ख़त्म होती है गहनों की
पैसों की चमक से ख़त तो ख़त मज़मून भी बदल जाते हैं ...
न जाने क्यों बाँधती है विश्वास की डोर,
रिश्ते हों या इन्सान सब बदल जाते हैं ...
पल-पल बढती हैं ज़िन्दगी से नज़दीकियाँ,
हमराज़ ही नहीं राज़ भी बदल जाते हैं ...
ज़िन्दगी के खेल का लेखक नही बदलता ,
कागज़ हो या कलम सब बदल जाते हैं ...अब तो देखा है यारो हमने यहाँ तक कि
मंदिर ही नही भगवान भी बदल जाते हैं ...
सोनू जी ! कच्ची-कच्ची उम्र में पक्की-पक्की बातें .......ज़ो परोस दी हैं आपने ...हमें अच्छी लगीं.
ReplyDeleteदुनिया को देखने का आपका नज़रिया मन को भाया .....प्रयास ज़ारी रखें.
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
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ReplyDeleteहूँ ....! क्या पुकारूं आपको ? ..पाटली ! या कुमायूं वाले ब्लोगर जी ! हाँ ...यही ठीक रहेगा .
ReplyDeleteतो ..आप आये कमेन्ट दिया उत्साहवर्धन किया ...धन्यवाद .
आप कुमायूं के बारे में कुछ और बताइए न ! .....कुमायूं से पन्त जी की याद आती है ...लगता है जैसे की पूरे हिमालय में उनकी आत्मा बसी हुयी है