इबादते एक खवाब बन कर रह गये हर आरजू एक आस बन कर रह गये ना जाने क्या गलती है हमारी , दर्द भी एहसान बन कर रह गये अड़ तो हादसों में चल रहा ये सफ़र वो हसीं पल बस याद बन के रह गये किसी के होने का एहसास धुड़ते रहे रिश्ते भी अनजान बन कर रह गये अनचाहे ठोकरों में पल रही ज़िन्दगी पल-पल बेजान बन कर रह गये अफ़सोस होता है रह-रह कर दुरी का सिलसिले इमतिहा बन कर रह गये ....
A Poet, Writer & Wanderer at Heart - HR is my Calling..!!