वक़्त के आगोश में सब सिमट जाते हैं, रास्ते ही नहीं मंजिल भी बदल जाते हैं .. . बुझ जाये ग़र एक बार वक़्त का दिया , जज़्बात हो या अरमां सब बदल जाते हैं ... चमक ही नहीं चलन भी ख़त्म होती है गहनों की पैसों की चमक से ख़त तो ख़त मज़मून भी बदल जाते हैं ... न जाने क्यों बाँधती है विश्वास की डोर, रिश्ते हों या इन्सान सब बदल जाते हैं .. . पल-पल बढती हैं ज़िन्दगी से नज़दीकियाँ, हमराज़ ही नहीं राज़ भी बदल जाते हैं ... ज़िन्दगी के खेल का लेखक नही बदलता , कागज़ हो या कलम सब बदल जाते हैं ... अब तो देखा है यारो हमने यहाँ तक कि मंदिर ही नही भगवान भी बदल जाते हैं ...
A Poet, Writer & Wanderer at Heart - HR is my Calling..!!