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Showing posts from February, 2011

बदल जाते हैं

वक़्त के आगोश में सब सिमट जाते हैं, रास्ते ही नहीं मंजिल भी बदल जाते हैं .. .  बुझ जाये ग़र एक बार वक़्त का दिया , जज़्बात हो या अरमां सब बदल जाते हैं ...  चमक ही नहीं चलन भी ख़त्म होती है गहनों की   पैसों की चमक से ख़त तो ख़त मज़मून भी बदल जाते हैं ... न जाने क्यों बाँधती है विश्वास की डोर, रिश्ते हों या इन्सान सब बदल जाते हैं .. . पल-पल बढती हैं ज़िन्दगी से नज़दीकियाँ, हमराज़ ही नहीं राज़ भी बदल जाते हैं ...  ज़िन्दगी के खेल का लेखक नही बदलता ,  कागज़ हो या कलम सब बदल जाते हैं ... अब तो देखा है यारो हमने यहाँ तक कि   मंदिर ही नही भगवान भी बदल जाते हैं ...

tanha si har

तन्हा-तन्हा है , ये सफ़र हमारा सब कुछ है फिर भी कुछ नही हमारा .. हर पल मर रहे दुनिया के कारन  दुनिया से क्या है रिश्ता हमारा .. क्यों लड रहे रोज हम यूं खुद से  क्या होगा आखिर अंजाम हमारा. सभी से खाई हैं ठोकरें हमने यहाँ  क्या इतना बुरा है वक़्त हमारा ..  कल्पना के समंदर में डूबे रहे हरदम  और हर वक्त टूटता रहा सपना हमारा.  .....

man ki nadani

ऐ मन गुस्ताख ! चाहता क्या है ? सब उलझे हैं , आखिर इसकी तमन्ना  क्या है पल-पल सिमटे हैं  मन के  आगोश में  क्या ये उलझन , इम्तेहान  क्या है ...                                             ये जमीं चल रही , आसमां   देख रहा ये नादां दिल की  आरजू क्या है इस तरह विचलित है दिल का समंदर मोजे स्थिर हैं , न जाने किनारा क्या है ... मन की नादानी का क्या कोइ  अंत नही इस प्यासी रूह का इलाज क्या है ? हर पल अस्थिर आरजू पनपती इसमें ज़िन्दगी खोयी तो हैरानी क्या है ... कभी कामयाबी की चाह तो कभी कुछ और ही निरंतर बढ़ते अरमानों का अंजाम क्या है इस चढ़ती-उतरती मन की चाल का सुलझा-सुलझा  अंत क्या  है .....?                                 ...